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कविता

जब हँसता है कोई किसान

जितेंद्र श्रीवास्तव


वह हँसी होती है
महज चेहरे की शोभा
जिसका रहस्य नहीं जानता हँसने वाला

सचमुच की हँसी
उठती है रोम-रोम से

जब हँसता है कोई किसान तबीयत से
खिल उठती है कायनात
नूर आ जाता है फूलों में
घास पहले से मुलायम हो जाती है

उस क्षण टपकता नहीं पुरवाई में दुख
पूछना नहीं पड़ता
बाईं को दाईं आँख से खिलखिलाने का सबब!


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